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Noor Jahan’s 22nd death anniversary:जानें नूरजहां के जीवन की वो कहानी,जिसमें तानाशाह से लेकर क्रिकेटर तक थे उनके दीवाने

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Noor Jahan’s 22nd death anniversary:जानें नूरजहां के जीवन की वो कहानी,जिसमें तानाशाह से लेकर क्रिकेटर तक थे उनके दीवाने

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Noor Jahan’s 22nd death anniversary: पाकिस्तान की मल्लिका ए तरन्नुम कहे जाने वाली नूरजहां की आज 22 वीं पुण्यतिथि हैं. जिस तरह भारत के पास स्वर कोकिला लता मंगेशकर थीं और उसी तरह भारत में जन्मी, पली ( बंटवारे के बाद) पाकिस्तान के पास भी सुरो की मलिका कहे जाने वाली नूरजहां थीं.नूरजहां की गायकी और खूबसूरती के लाखों दीवाने हुआ करते थे. कहते हैं, इनकी आवाज में बड़ी कशिश थी.


भारतीय सिनेमा से किया अपने करियर की शुरआत


नूरजहां भारतीय सिनेमा की शुरुआती स्टार रहीं, इन्होंने बड़ी मां(1945), गांव की गोरी (1945), जीनत(1945), अनमोल(1946), जुगनू (1947), मिर्जा साहिबान(1947) जैसे भारतीय सिनेमा में काम किया हैं. साथ ही पंजाबी सिनेमा को स्थापित करने में इनका बड़ा हाथ रहा. भारत में इनकी करियर की शुरुआत हो ही रही थी कि 1947 में देश के दो टुकड़े हो गए और नूरजहां पाकिस्तान चली गई. इन्हे भारत पाकिस्तान को जोड़ने वाला ब्रिज भी कहा जाता था.

6 साल की उम्र से ही गाना गाना शुरू किया


नूरजहां का जन्म पंजाब में एक पंजाबी मुस्लिम परिवार में में हुआ था. उनका बचपन में नाम अल्लाह राखी वसई था. नूरजहां इमदाद अली और फतेह बीबी की 11वी संतान थी.नूरजहां के माता-पिता थिएटर में काम करते थे. जिसके कारण उनका गाना के प्रति लगाव अधिक रहा. 6 साल की उम्र से ही गाना गाने लगी. इनके पिता ने उस्ताद गुलाम मोहम्मद के पास संगीत की शिक्षा लेने के लिए भेज दिया. संगीत सीखने के बाद नूरजहां लाहौर में स्टेज परफॉर्मेंस, लाइव प्रोग्राम, थिएटर सब करने लगी थी. इनके हुनर को देखते हुए थिएटर के मालिक (जहां नूरजहां के पिता काम करते थे) ने उन्हें कलकत्ता जीवन संवारने के लिए भेज दिए.


पंजाबी फिल्म से मिली बड़ी पहचान


1935 में पंजाबी फिल्म पिंड दी कुड़ी रिलीज हुई थी, जिसका निर्देशन केडी मेहरा ने किया था. इस फिल्म में नूरजहां ने अपनी बहनों के साथ गाना गाया और फिल्म एक्टिंग भी की थी. उनके करियर की ये पहली फिल्म हिट रही. इसके बाद उनका ये सफर नहीं रुका.

पाकिस्तान की पहली फीमेल डायरेक्टर बनीं


देश के बंटवारे के बाद उन्होंने पाकिस्तान जाकर बसने का फैसला किया. मुंबई छोड़कर वो परिवार समेत कराची जाकर बस गईं. वहां जाने के 3 साल बाद उन्होंने 1951 में रिलीज हुई फिल्म चन वे में बतौर एक्टर काम किया जो हाईएस्ट ग्रॉसिंग रहीं. इस फिल्म को इन्होंने खुद डायरेक्ट किया जिसके कारण इन्हें पहली पाकिस्तानी डायरेक्टर का भी खिताब मिला.


दो सदियां रही नाकाम


1942 में भारत में ही इन्होंने शौकत हुसैन रिजवी के साथ शादी की थी. जिससे उन्हें तीन बच्चा भी था. शादी के 11 साल बाद उन्होंने तलाक ले लिए और 1958 में इन्होंने अभिनेता एजाज दुर्रानी से शादी कर ली. जिसके बाद पति के दबाव के कारण 1961 में आई फिल्म “गालिब” उनकी आखिरी फिल्म रहीं.

कहा जाता है कि नूर और क्रिकेटर नजर का अफेयर चल रहा था, जिसे एक दिन नूर के पति उन दोनो को एक साथ कमरे में देख लेते हैं और नजर इसी डर के कारण खिड़की से कूद जाता है और उसकी हाथ टूट जाती है और इसी कारण नजर का कैरियर खत्म हो जाता है. और इसी कारण 1971 में इनकी तलाक हो गई .इस शादी से भी इनके 3 बच्चे हुए जिनका भरण पोषण का जिम्मेवारी इनपर आ गई थी.


क्या हुआ जब पाकिस्तान के तीसरे राष्ट्रपति को नूर ने लगा दिया था फोन?


जब नूर जहां पाकिस्तान की मक्किला बन गई थी.इनके लाखों दीवाना थे. उन्ही में से एक पाकिस्तान के तानाशाह (राष्ट्रपति) इनके दीवाने थे. जब नूरजहां लंदन से आई तो उन्होंने कराची के रेडियो स्टेशन में 3 गाने गाए और पाकिस्तान के तानाशाह को फोन लगाया और कहा ‘ हेलो.. हां चंदा, मैने तीन गीत रिकॉर्ड किए है. आप रात 8 बजे सुन लेना.


नूरजहां की तुलना लता मंगेशकर से की जाती थी


रिपोर्ट्स की माने तो, नूर जहां की गाने की तुलना लता मंगेशकर से किया जाता था. ये भी कहा जाता है कि अगर नूर जहां पाकिस्तान नहीं जाति तो लता मंगेशकर इतने आगे नहीं बढ़ती. कहा जाता है कि लता नूर की बहुत बड़ी फैन थी. नूरजहां की मुलाकात जब लता मंगेशकर से भारत पाकिस्तान बॉर्डर पर हुई तो दोनों एक दूसरे को लिपटकर रोने लगी, सिर्फ लता ही नहीं इनका संबंध हिंदी सिनेमा के कई दिग्गज कलाकारों से भी रहा. खास बात यह हैं कि इतना फेमस होने के वाबजूद भी ये हमेशा जमीन से जुड़ी रही. इनके झुकाव शील अंदाज को लेखक एजाज गुल अपने लेख में भी वर्णन करते हैं.


36 साल बाद लौटी अपने जन्मस्थाप, 8 साल बाद लिया अंतिम सांस


1983 में अपनी बेटियों के साथ भारत आई और यहीं उनका भारत का अंतिम सफ़र रहा. 1992 के बाद इन्होंने गाना से दूरियां बना ली और 2000 में अचानक से हार्ट अटैक से उनकी मृत्यु हो गई.सोचने वाली बात यह है कि नूरजहां के इतने फैन होने के बावजूद उनके जनाजे में केवल 4 लोग ही शामिल हुए. क्योंकि इनकी बेटियों ने सरकार के फरमान को अस्वीकार करते हुए अपनी मां को सुपुर्द-एख-में अंतिम संस्कार किया.

Komal Singh
Komal Singhhttps://bloggistan.com
कोमल कुमारी पिछले 2 साल से डिजिटल मीडिया में काम कर रही हैं और मौजुदा समय में ये Bloggistan में कंटेंट राइटर है. इन्हें ऑटोमोबाइल के क्षेत्र में विशेष रुचि है. इन्होंने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय से बैचलर की डिग्री हासिल किया है.

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